बहुत जरूरी है एक शीतल छाया
#दिनांक:-1/4/2024 #शीर्षक:-बहुत जरूरी है एक शीतल छाया आह बेताब होकर, फिर थोड़ा सा रोकर, खुद की आँसू पोंछ डाला, तंग आकर इस दुनिया से, मैंने अपने आप से मुहब्बत कर डाला , जब मायूस होती! समझाती दुलारती खुद को, जब जीतती , मिठाई खिलाती खुद को , जब कोई दिल दुखाता, पहले बहुत गुस्सा करती खुद पर, फिर पीठ थपथपाती प्यार दिखाती खुद को । गाना एक प्रेमी की तरह, अपनी रूह प्रेमिका को सुनाती, ना आये नींद जब, लोरी गाकर सिर हौले -होले सहलाती, सब कुछ अपने आप से है फिर भी तन्हाई है । पागल दिल जीतकर भी हारा हरजाई है। प्रेम में बिह्वल होकर भी , खुद को गले नहीं लगा पाती । गालों को चूम नहीं पाती , कंधे पर सर रख नहीं पाती धड़कनें सुन नहीं पातीं, तभी कमजोर पड़ जाती हूँ । अपने अंदर के अपने से आह सुन पाती हूँ, जरूरी है बहुत जरूरी है एक शीतल छाया की , लिपटाये लिपटी रहे ऐसी काया की , रिश्ते मधुर मजबूत मेहनती माया की, जीवन गुदगुदाते एहसास जय जाया की... । (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई