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मार्च, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बहुत जरूरी है एक शीतल छाया

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#दिनांक:-1/4/2024 #शीर्षक:-बहुत जरूरी है एक शीतल छाया आह बेताब होकर, फिर थोड़ा सा रोकर, खुद की आँसू पोंछ डाला, तंग आकर इस दुनिया से, मैंने अपने आप से मुहब्बत कर डाला , जब मायूस होती! समझाती दुलारती खुद को, जब जीतती , मिठाई खिलाती खुद को , जब कोई दिल दुखाता, पहले बहुत गुस्सा करती खुद पर, फिर पीठ थपथपाती प्यार दिखाती खुद को । गाना एक प्रेमी की तरह, अपनी रूह प्रेमिका को सुनाती, ना आये नींद जब, लोरी गाकर सिर हौले -होले सहलाती, सब कुछ अपने आप से है फिर भी तन्हाई है । पागल दिल जीतकर भी हारा हरजाई है। प्रेम में बिह्वल होकर भी , खुद को गले नहीं लगा पाती । गालों को चूम नहीं पाती , कंधे पर सर रख नहीं पाती धड़कनें  सुन नहीं पातीं, तभी कमजोर पड़ जाती हूँ । अपने अंदर के अपने से आह सुन पाती हूँ, जरूरी है  बहुत जरूरी है एक शीतल छाया की , लिपटाये लिपटी रहे ऐसी काया की , रिश्ते मधुर मजबूत मेहनती माया की, जीवन गुदगुदाते एहसास जय जाया की... । (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

एक पल सुकून की गहराई

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#दिनांक:-30/3/2024 #शीर्षक::-एक पल सुकून की गहराई। भीड़ तंत्र महफ़िलों के हम  तन्हा कलाकार हैं,  हम खुद से खुदी इश्क  करने वाले कलाकार हैं।  बीज अकेलेपन की खेती के हम व्यापार हैं, अकेले जीवन जीते मस्त   मसालेदार यार हैं।  सारा काम मोबाइल ने  जब से सम्भाला है यारों,  अपने घर में ही हम  बहुत दूर के रिश्तेदार हैं!  खो गए घर खो गया आंगन  जो छाँवनीदार था,  खो गए बाबू जी खो गया  शानो-शौकत जो खुद्दार है।  अकेलेपन की कभी चोरी ही नहीं  होती ना जाने क्यूँ?  यहाँ तो डकैत भी कहते हमारा  भविष्य अंधकार है।  जो कभी चोरी छुपके अपने में  मगन हो लो एक दिन,  रात रिसियाकर कहेगी  अब रो तेरा रोनी त्यौहार है।  हाय बड़ी किस्मत वाले हैं  हम भारतीय जान लो,  वर-वधू झगड़ा बस वक्त मनोरंजन का आविष्कार हैं।  कोई इधर रूठा कोई उधर टूटा  कोई ताउम्र छूटा,  पकड़ते हैं हम सबकुछ  फिर भी तन्हा के दरबार हैं। दर-दर भटकते है पर  रास्ता साफ नहीं दिखता,  बन्द आँखों में अ...

रंगभरी एकादशी

#दिनांक:-21/3/2024 #शीर्षक:- रंगभरी एकादशी। आओ चलो बहुत-बहुत पीछे चलते हैं,  दादू की सुलझी बात दादी का दुलार ढूंढते हैं।  पापा की स्नेहिल छॉव माँ के आँचल में छुपते हैं,  धमाचौकडी सारे घर आंगन में पुनः करते हैं। छोटी-छोटी मिट्टी के बर्तन में खाना सीखते हैं,  अरे लंगोट यार बगैर तो बचपन ही सूना,  आज फोन करके यारों के साथ बचपन जीते हैं। आज है रंगभरी एकादशी खूब गुलाल खेलते हैं डब्बू भईया के संग-साथ चन्दू को तंग करते हैं। बड़े क्या हुए बडप्पन दिखाना पड़ता है, मन समोसे चाहे पर मसोस कर चलना पडता है । किलकारी अच्छी लगती पीहू की,  बात अलग है रात भर जागना पडता है।  अच्छों की महफिल में अच्छे हैं, बुरों की महफिल में भी अच्छा बनना पड़ता है । तंग मन कभीकभी खुलकर रोना चाहता है,  आँखों में पानी फिर भी खुलकर हँसना पडता है । आशिक के शहर में दिल पत्थर करना पड़ता है। (स्वरचित मौलिक) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

इश्क की लेखनी को चलाकर

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#दिनांक:-21/3/2024 #शीर्षक:-इश्क की लेखनी को चलाकर। भावों को आधार बताकर,   जन से जन का हाथ मिलाकर ,   मम् और अहम् का भेद बताकर,   अनेकों सद-विचार अपनाकर,    पीड़ित ह्दय पर कलम चलाकर,    साहित्य का ह्दय प्रेम बताकर ।     इश्क पर लेखनी चलाकर,     अनछुए पहलू को सजाकर ,     भावभंगिमा भुजंग सा लिपटाकर,      नर, नारी का अस्तित्व बताकर,      विश्वासी संदेश हर दिल तक पहुॅचाकर,      सामाजिक साम्राज्य साहित्य फैलाकर ,       निहित मात्र हितकर साहित्य संदेश प्रदानकर,        फैलाती संदेश सत्य धर्म सदाचार समाचार,        कविता कवित्त का सरोकार, आचार-विचार,         बदलती दुनिया के बदलाव का अस्तित्व भार,         जगाती अलख ज्योति कविता प्रेम पहचानकर।          साहित्य का संदेश रोचक आधारों का,          आदान-प्रदान करती विचारों का,    ...

अनैतिकता से कौन बचाए

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#दिनांक:-22/3/2024 #शीर्षक:-अनैतिकता से कौन बचाये। भटकते हम रास्ते, रास्ता सही कौन दिखाए? कब हम गलत कब सही , आंकलन कर कौन बताए? हर काम के बदले, कुछ चाहिए होता है , शामिल स्वार्थ हर रग में, उम्र भर उम्मीद खाये होता है। ल को द कौन सिखाए , हरिश्चंद्र घर-घर कौन लाए? चिलचिलाती धूप की चुभन , बेवक्त वक्त का आंकलन । धुन्ध से ढ़कता चमकता चमन, दिखावट के अंध से अंधकार गगन। मेहनत की गठरी कौन ढोहे, सही को सही कौन बताए। कलयुग घनघोर असरदार, भाई-भाई को रहा मार! बाहुबलियों का गर्जन सच का तिरस्कार, घूम रहा हवसी करता बलात्कार। अनैतिकता से कौन बचाए, झूठ के प्रति आवाज कौन उठाए । (स्वरचित, मौलिक) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई  

अररर होली है

#दिनांक:-22/3/2024 #विधा:-गीत #शीर्षक:- अररर होली है। फागुन में उड़ेला गुलाल कि अररर होली है ----2 कृष्ण राधा संग संग नाचै गोपियों संग रास रचाते मस्त मगन फगुआ हैं गाते भांग नशा में कुछ भी बॉचे -2 ।1। निकलू ओढकर चुनर लाल कि अरररर होली है---2 फागुन में उड़ेला गुलाल कि अररर होली है ----2 आँखों में काजल पैरों में पायल सज धज करती साजन को घायल -2 ।2। अधर हुए लाली लाल कि अरररर होली है---2 फागुन में उड़ेला गुलाल अररर होली है ----2 सखियन संग सखियॉ बतियाती होली के ओट में खूब खिझाती फाग गीत झूम झूमकर गाती जोगी भोगी को करती मदमाती-2 ।3। लाल पीला गुलाबी गाल कि अरररर होली है--2 फागुन में उड़ेला गुलाल कि अररर होली है ---2 भौजी पर देवर पिचकारी मारे, साली दिखाती दिन में तारे , मतवाली गोरी नैन कजरारे , बिरहन तरसे अँखिया खारे -2  ।4। आजा सजन दिल रहे न मलाला अरररर होली है -2 फागुन में उड़ेला गुलाल कि अररर होली है ----2 करलो सबसे मेल मिलाप , होली के रंग से खेलो आप। प्रेम सुधा पीलो भर ग्लास तृष्णा क्रोध को करो नाश-2 ।5। होली में हो जाओ निहाल कि अरररर होली है--2 ...

अनैतिकता से कौन बचाए

#दिनांक:-19/3/2024 #शीर्षक:-अनैतिकता से कौन बचाए। भटकते हम रास्ते, रास्ता सही कौन दिखाये? कब हम गलत कब सही , आकलन कर कौन बताये? हर काम के बदले, कुछ चाहिए होता है , शामिल स्वार्थ हर रग में, उम्र भर उम्मीद खाये होता है। ल को द कौन सिखाए , हरिश्चंद्र घर-घर कौन लाये? चिलचिलाती धूप की चुभन , बेवक्त वक्त का आकलन । धुन्ध से ढ़कता चमकता चमन, दिखावट के अंध से अंधकार गगन। मेहनत की गठरी कौन ढोये, सही को सही कौन बताये। कलयुग घनघोर असरदार, भाई-भाई को रहा मार! बाहुबलियों का गर्जन सच का तिरस्कार, घूम रहा हवसी करता बलात्कार। अनैतिकता से कौन बचाये, झूठ के प्रति आवाज कौन उठाए । (स्वरचित, मौलिक) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई 

प्रेम

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#दिनांक:-18/3/2024 #शीर्षक:- प्रेम एक दस्तूर चला आ रहा है , दिल शीशे सा हर रोज तोड़ा जा रहा है, कम नहीं होने का नाम है मुहब्बत , एक मरता, दस जिन्दा हो रहा है, उम्मीद की बारीक धागे से, बंध जाता है हर कोई , एक अजीज ना मिला तो क्या, दूसरा आजमाता है हर कोई, नेह के मेह में मदहोश है दुनिया, प्रेम सार्वजनिक राह है, इस पर चलना चाहता है हर कोई , प्रेम के महासागर में एक बार, डूबता है हर कोई , भले वादा झूठा हो, पर निभाता है हर कोई , प्यार इंसान के खून का कतरा है, जहाँ-जहाँ गिरता है, रक्त बीज सा, नया पौधा बन जाता है , कोई किनारे में लटक जाता है , तो कोई रूह में उतर जाता है , किसी की कामयाब होती है मुहब्बत , तो किसी की बीच सफर में, बिखर जाता है , कोई भूल कर नयी जिन्दगी बसा लेता है , तो कोई ताउम्र इंतज़ार करता है....| बस प्रेम का। रचना मौलिक, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है| प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

बौराया फागुन मास

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#दिनांक:-18/3/2024 #शीर्षक:- बौराया फागुन मास। वृद्ध जवान सभी बौराये, बौराया फागुन मास, रंग से सराबोर हो चूनर, मदभरी महकती साॅस। मादकता होली की गवाह,  भीगे गोरा बदन पिचकारी फुहार से,  प्रकृति रंगीन हुई पुरवाई बयार से।  दुल्हन का मन डोल रहा, चातक मन में रंग घोल रहा।  चाँद-सितारों की चमक और गहराई , सतरंग रंगों ने ब्रज में धूम मचाई। देवर का मजाक भौजी की तनहाई, लिखकर प्यार पिया को फिर-फिर रही बुलाई। तैयार हो तैयारी की शुरूआत करले,  कामधेनु को लगाओ रंग सबसे पहले। बारी-बगीचा की हो रही सफाई,  गेहूँ की भी हो रही कटाई लवाई। है दहन की तैयारी जोर शोर पर,  अच्छाई बैठा बीच बुराई ओर पर।  रंग भरी रंगीन होली धूम मचाई,  सररर नाचें गोपियां राधा संग कन्हाई । (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

बहकाना

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#दिनांक:-14/3/2024 # शीर्षक:-बहकाना आप कसम की कसम खाये जा रहे है , मुहब्बत है तुमसे बताए जा रहे है , काश कि महसूस हम भी कर पाते , आप तो अपनी मुहब्बत के ही गुन गाये जा रहे है । शिकवा नहीं, ना शिकायत है तुमसे हमारा , दिल हार बैठे है इसलिए ना दूरी गवारा , तन्हाई का ओट लिए बस रोये जा रहे है , नाउम्मीद के धागे में प्रेम पिरोये जा रहे है। कहते है -- तेरे अंजुमन में आकर बैठ गए है , जिस्म नहीं रूह तक फैल गए है , झगडे से प्रेम प्रताड़ित कर , प्रगाढ़ता का गुहार लगाये जा रहे है , आप इश्क की क्या रीत निभा रहे है?? बहुत ज्यादा प्यार है तुमसे जानेमन , हर बार हमें बहकाये जा रहे | (मौलिक,स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई  

देख लिया

#दिनांक:-14/3/2024 #शीर्षक:- देख लिया। अनुष्ठान आचमन से माँ को बुलाकर देख लिया, 'मै' 'तुम' से ऊपर पराकाष्ठा बताकर देख लिया । चिन्तन शिखर की चोटी पर प्रभुवर को देख लिया , देवता, गुरुजन, जनता में मान्यवर को देख लिया। चिल्लाकर, खुद को चुप कराकर देख लिया, सब मोह माया है 'प्रति' को बताकर देख लिया। खामोशी को कागज पर उतार कर देख लिया, रंगीन ख्वाहिश को कोरा बनाकर देख लिया। प्यार की नदी, समुन्दर,हर एक मंजर देख लिया, मन के ऐनक से दिल का पत्र पढ़कर देख लिया। ज्ञान विज्ञान के महासागर में डूबकर देख लिया, अहंकार हुंकार भर बाद बेबस में टूटकर देख लिया। कल्पनाओं से भावनाओं का जिरह देख लिया, प्रेम की अंतिम सीमा में उर्मिला का विरह देख लिया। सारी दुनिया पाकर स्वयं को खोकर देख लिया, अहमियत खोती सम्बन्धों का ठोकर देख लिया । गमगीन शवाब को मधु पिलाकर देख लिया, प्रेम को सब धर्मों में मिलाकर देख लिया। रिश्तों का अस्तित्व समझ समझाकर देख लिया, सुख-दुख को तराजू से तौल तौलाकर देख लिया । कर्मकांड में औषधि और विष पीकर देख लिया, मोह माया काया साया सब साथ सीकर देख लिया। ...

ढ़ांचा एक सा

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#दिनांक:-8/3/2024 #शीर्षक:-ढ़ांचा एक सा। किसी अन्य पटल पर प्रेषित नहीं है। आंकलन करते हो तुम मेरा....... मेरे उठने-बैठने का तरीका देखते हो, चलने-बोलने से मुझको तोलते हो। भाव-भंगिमा से एक रहस्य उपजाते हो, कल्पना से फिर बहुत खूब सजाते हो। एक दायरा गोल बना लेते हो, मुझे फिर उसमें बैठा लेते हो! मेरी प्रतिभा को बिना जाने, अपनी प्रतिमा में मुझे चुनवा देते हो! पर इतने से भी संतुष्टि नहीं मिलती.... कैसे खाती हूँ कैसे सोती हूँ, जानने को फिर आतुर हो जाते हो। क्या पसंद है क्या नापसंद ? खबर सबका रखना चाहते हो! आखिर क्यूँ.......? क्यूँ आंकलन करते हो तुम मेरा......? नारीश्वर हूँ मैं भी, तराजू में फिर क्यूँ बैठाते हो? अब अबला नहीं, नित प्रतिदिन होती सबला हूँ, तेरी सरस्वती, तेरे संग कमला हूँ। संग-साथ जीवन व्यतीत करती अर्धांगिनी, ममतामयी, प्रेममयी तेरी ही सरला हूँ, फिर क्यूँ आंकलन करते हो......? हर कली नारी ही है, ढांचा एक सा, हृदय एक सा, ममता एक सी, जीवन भी एक सा। एक सा भाव, एक सा भान, एक सा सौन्दर्य, फिर बराबर, क्यूँ ना दे पाते मान.......? ठेस पहुंचाते हो आंकलन क...

तुम हम

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#दिनांक:-4/3/2024 #शीर्षक-तेरा मेरा साथ !             तू मेरी तरह,        मेरी नज़्म रहना हमेशा,    तेरे विश्वास पर विश्वास हमे,          रहता है हमेशा,         तेरी ख्वाहिश नहीं,         तू हकीकत चाहिए ,         तुम फरमाइश नहीं ,       मेरी चाहत रहे हमेशा !                                                  तेरा मेरा साथ,                    सुकुन और समय का हाथ,    ...

झूठ बोलता काजी

#दिनांक:-4/2/2024 #शीर्षक: झूठ बोलता काजी। कहाँ किससे किसके पंगे हो गए?  इस कलयुग में ये अब धंधे हो गए। अनगिनत खून करके पापी गंगा नहा रहा,  इज्ज़त देकर भी प्रतिष्ठित याचक हो गए । कही धर्म, कही जातिवाद पर,  कही रीति, कही समाज पर, कहीं शानो-शौकत कही दिखावटी,  कहीं किसी की दुनिया है बनावटी ! बदल गए मौसम के मिजाज,  कहाँ हो मानसिक तनाव का इलाज?  यहाँ छोटी-छोटी बातों पर दंगे हो गए,  ना जाने किससे किसके पंगे हो गए?  माफियाओं का बोलबाला,  सत्य का हो रहा मूंह काला।  कन्याओं की सौदेबाजी,  पैसे के लिए, झूठ बोलता काजी।  विज्ञापन की भरमार,  शिक्षा पर बेरोजगारी का वार। विवेकी, सदाचारी भी बेढंगे हो गए,  यथार्थ नंगे तो काल्पनिक चंगे हो गए, राजा रंक पैसे से लालकाल भीखमंगे हो गए,  चोरी,छिनैति,हैवानियत,इस युग के धंधे हो गए । (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

समाधान होना चाहिए

#दिनांक:-5/3/2024 #शीर्षक:-समाधान होना चाहिए। सूखा पेड़ टूटी टहनी, आदर्श मिसाल कहनी । कसूरवार का किरदार, उठा लिया अब हथियार। अभिमन्यु की बची न रूह, बस अर्थी हित बना चक्रव्यूह। क्या मिला इस मार धाड़ से, रिश्ता बेनाम निकला पहाड़ से। जो महाभारत ना हुआ होता, लाशों का ढ़ेर न बिछा होता। किसी का भाई किसी का प्यार, ना जाने कितनी प्यासी तलवार...? किया, करता रहा अविस्मरणीय प्रहार, गवाही कैसे दे दिया भारतीय संस्कार? अभी भी वक्त है जाग जाओ, सोने की चिड़िया थी अब बनाओ । पीछे नहीं अब से आगे देखना है, अपनी प्रतिभा का मूल्य समझना है । ना बहस ना विवाद करो, संरक्षक से सत्य संवाद करो । द्वेष, ग्लानि ना अभिमान होना चाहिए, ज्ञान विज्ञान से समाधान होना चाहिए । (स्वरचित, मौलिक) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई