देख लिया
#दिनांक:-14/3/2024
#शीर्षक:- देख लिया।
अनुष्ठान आचमन से माँ को बुलाकर देख लिया,
'मै' 'तुम' से ऊपर पराकाष्ठा बताकर देख लिया ।
चिन्तन शिखर की चोटी पर प्रभुवर को देख लिया ,
देवता, गुरुजन, जनता में मान्यवर को देख लिया।
चिल्लाकर, खुद को चुप कराकर देख लिया,
सब मोह माया है 'प्रति' को बताकर देख लिया।
खामोशी को कागज पर उतार कर देख लिया,
रंगीन ख्वाहिश को कोरा बनाकर देख लिया।
प्यार की नदी, समुन्दर,हर एक मंजर देख लिया,
मन के ऐनक से दिल का पत्र पढ़कर देख लिया।
ज्ञान विज्ञान के महासागर में डूबकर देख लिया,
अहंकार हुंकार भर बाद बेबस में टूटकर देख लिया।
कल्पनाओं से भावनाओं का जिरह देख लिया,
प्रेम की अंतिम सीमा में उर्मिला का विरह देख लिया।
सारी दुनिया पाकर स्वयं को खोकर देख लिया,
अहमियत खोती सम्बन्धों का ठोकर देख लिया ।
गमगीन शवाब को मधु पिलाकर देख लिया,
प्रेम को सब धर्मों में मिलाकर देख लिया।
रिश्तों का अस्तित्व समझ समझाकर देख लिया,
सुख-दुख को तराजू से तौल तौलाकर देख लिया ।
कर्मकांड में औषधि और विष पीकर देख लिया,
मोह माया काया साया सब साथ सीकर देख लिया।
अंततः कुछ ना हासिल हुआ,
सिर्फ एक को छोड़कर...
अगाध खुशी...
जब पिया प्रेम रसपान,
रूह का आत्मा से मिलन
संयोग सीताराम राधाकृष्ण संगम ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
#शीर्षक:- देख लिया।
अनुष्ठान आचमन से माँ को बुलाकर देख लिया,
'मै' 'तुम' से ऊपर पराकाष्ठा बताकर देख लिया ।
चिन्तन शिखर की चोटी पर प्रभुवर को देख लिया ,
देवता, गुरुजन, जनता में मान्यवर को देख लिया।
चिल्लाकर, खुद को चुप कराकर देख लिया,
सब मोह माया है 'प्रति' को बताकर देख लिया।
खामोशी को कागज पर उतार कर देख लिया,
रंगीन ख्वाहिश को कोरा बनाकर देख लिया।
प्यार की नदी, समुन्दर,हर एक मंजर देख लिया,
मन के ऐनक से दिल का पत्र पढ़कर देख लिया।
ज्ञान विज्ञान के महासागर में डूबकर देख लिया,
अहंकार हुंकार भर बाद बेबस में टूटकर देख लिया।
कल्पनाओं से भावनाओं का जिरह देख लिया,
प्रेम की अंतिम सीमा में उर्मिला का विरह देख लिया।
सारी दुनिया पाकर स्वयं को खोकर देख लिया,
अहमियत खोती सम्बन्धों का ठोकर देख लिया ।
गमगीन शवाब को मधु पिलाकर देख लिया,
प्रेम को सब धर्मों में मिलाकर देख लिया।
रिश्तों का अस्तित्व समझ समझाकर देख लिया,
सुख-दुख को तराजू से तौल तौलाकर देख लिया ।
कर्मकांड में औषधि और विष पीकर देख लिया,
मोह माया काया साया सब साथ सीकर देख लिया।
अंततः कुछ ना हासिल हुआ,
सिर्फ एक को छोड़कर...
अगाध खुशी...
जब पिया प्रेम रसपान,
रूह का आत्मा से मिलन
संयोग सीताराम राधाकृष्ण संगम ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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