झूठ बोलता काजी
#दिनांक:-4/2/2024
#शीर्षक: झूठ बोलता काजी।
कहाँ किससे किसके पंगे हो गए?
इस कलयुग में ये अब धंधे हो गए।
अनगिनत खून करके पापी गंगा नहा रहा,
इज्ज़त देकर भी प्रतिष्ठित याचक हो गए ।
कही धर्म, कही जातिवाद पर,
कही रीति, कही समाज पर,
कहीं शानो-शौकत कही दिखावटी,
कहीं किसी की दुनिया है बनावटी !
बदल गए मौसम के मिजाज,
कहाँ हो मानसिक तनाव का इलाज?
यहाँ छोटी-छोटी बातों पर दंगे हो गए,
ना जाने किससे किसके पंगे हो गए?
माफियाओं का बोलबाला,
सत्य का हो रहा मूंह काला।
कन्याओं की सौदेबाजी,
पैसे के लिए, झूठ बोलता काजी।
विज्ञापन की भरमार,
शिक्षा पर बेरोजगारी का वार।
विवेकी, सदाचारी भी बेढंगे हो गए,
यथार्थ नंगे तो काल्पनिक चंगे हो गए,
राजा रंक पैसे से लालकाल भीखमंगे हो गए,
चोरी,छिनैति,हैवानियत,इस युग के धंधे हो गए ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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