तुम साधना हो
#दिनांक:-24/10/2024 #शीर्षक:-तुम साधना हो। तुम ईश्वर की अनुपम संचेतना हो रचित ह्दय प्रेम की गूढ़ संवेदना हो क्या कहा जाए अद्भुत सौन्दर्य वाली तुम सृष्टि की साकार हुई साधना हो । घुँघराले केश, मृगनयनी, तेज मस्तक अंग सब सुअंग लगें यौवन दे दस्तक। ठुड्डी और कनपटी बीच चमके कपोल कवि सहज अनुभूति की तुम पालना हो । तुझसे जुड़कर कान की बाली इतराए अधर लाली लाल देख गुलाब शरमाए स्वर्गलोक से आई तुम हो सुन्दर परी धरा पर सौन्दर्य की प्रबल भावना हो । तुम्हारे मन से निकलता सुन्दर सुविचार , देश-परदेश तक पहुँचा आचार विचार । प्रेम जिसकी तुम होगी, वो होगा धन्य, मनहर स्वप्न की आलौकिक कल्पना हो । (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई