रिमझिम बूँदों की बहार

#दिनांक :-30/7/2024
#शीर्षक:-रिमझिम बूँदों की बहार
 
रिमझिम बूँदों की बहार आई, 
हरियाली चहुॅओर देखो छाई।
श्रृंगार करने को आतुर धरित्री, 
रीति नवल अभ्यास देखो लाई।

मिट्टी से सोंधी महक उठ रही,
मलय सौरभ से मस्त हो रही। 
न भास्कर न रजनी आते गगन में, 
बस सावन की रिमझिम बरस रही।

तन तपन राह निहारती प्रिय का,
जंजाल कमोबेश हो रहा जिय का।
अनमनी सारा वक्त समय देखती,
पूजा करती ग्राम देवता डीह का।

धरा समान कर रही नायिका श्रृंगार, 
काजल, बिंदी, लाली, इत्र बार-बार। 
कपोल शर्म से और लाल हो रहे हैं, 
साजन से सावन कर देना इजहार।

पंचमी, तीज, कजली सखियों संग, 
मनाएंगे, झूलेगें हम सब भर उमंग। 
शिव आराधना करती गोधूलि पहर,
हर गेह बूंद बन बरसे खुशी भर रंग। 

(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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