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रिमझिम बूँदों की बहार

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#दिनांक :-30/7/2024 #शीर्षक:-रिमझिम बूँदों की बहार   रिमझिम बूँदों की बहार आई,  हरियाली चहुॅओर देखो छाई। श्रृंगार करने को आतुर धरित्री,  रीति नवल अभ्यास देखो लाई। मिट्टी से सोंधी महक उठ रही, मलय सौरभ से मस्त हो रही।  न भास्कर न रजनी आते गगन में,  बस सावन की रिमझिम बरस रही। तन तपन राह निहारती प्रिय का, जंजाल कमोबेश हो रहा जिय का। अनमनी सारा वक्त समय देखती, पूजा करती ग्राम देवता डीह का। धरा समान कर रही नायिका श्रृंगार,  काजल, बिंदी, लाली, इत्र बार-बार।  कपोल शर्म से और लाल हो रहे हैं,  साजन से सावन कर देना इजहार। पंचमी, तीज, कजली सखियों संग,  मनाएंगे, झूलेगें हम सब भर उमंग।  शिव आराधना करती गोधूलि पहर, हर गेह बूंद बन बरसे खुशी भर रंग।  (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

भारत के

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कारगिल विजयदिवस पर विशेष #दिनांक:-26/7/2024 #विधा:- सजल #शीर्षक:-भारत के। तुम हो वीर सपूत महान भारत के बढाते हो तुम्हीं सम्मान भारत के ।।1। निछावर करते प्राण, मोह नहीं करते तुम विश्व-गुरु अभियान हो भारत के ।।2। मौत का कफन बांध लडते हो वीर तुम भारती-सपूत लाल महान भारत के ।।3। मातृभूमि की मिट्टी लगे सबसे अनमोल, कण-कण है चंदन समान भारत के ।।4। वायु सहस्त्र बलों के शौर्य गाथा गाती झूमकर करती नित सलाम भारत के।।5। तिरंगा शान से फहराया कारगिल पर, जवानों के सही प्रतिमान भारत के ।।6। कारगिल विजय दिवस गाता है गुणगान राष्ट्र हिन्दी भाषा पहचान भारत के।।7। दृढ नेतृत्व ,अद्भुत - पराक्रमी तुम, लाल माँ का स्वाभिमान भारत के ।।8। कोटि नमन करते सदा सत्य सनातन समर्पित सब अभिमान भारत के ।।9। तुंग हिमालय शीश झुकाता जिसके आगे, ऐसे ही होते हैं बलवान भारत के।।10। (स्वरचित, मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित है) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

मन का सावन

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#विधा:-छंदमुक्त गीत #दिनांक:-24/7/2024 #शीर्षक- मन का सावन  कोकिला, पपीहा के मधुर बोल, बारिश की रिमझिम, हरियाली चहुँओर। साजन की याद सताये, रह-रहकर, आया सावन माह देखों झूमकर--2  झूले पड़ गये, डाली-डाली  बम-बम बोले, हर गली-गली--2 कजरी की धुन,लगे मनभावन--2 बहुत सताता है ये, मन का सावन --2  मादकता में ,अवगाहन धरती, वर्षा का रस पावन करती--2 मचल रहा, मेरा भी मन-2 बड़ा मनोहर है, ये मन का सावन ---2  रचना मौलिक, स्वरचित और सर्वाधिक सुरक्षित है |  प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई 

नर से नारायण

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#गुरु पूर्णिमा विशेष  #दिनांक:-21/7/2024 #शीर्षक- नर से नारायण | जैसे लहरों के लिए,    किनारों की    जरूरत होती है,      आसमान को        चमकाने के लिए,          सितारों की            जरूरत होती है,              अपने आप को                 परखने के लिए,                    पैमानों की,                       जरूरत होती है । पैमाना जो,  सिखाता है,   पूरे जीवन का सार,    संक्षेप में बताने के लिए,      उदाहरण की खोज करता है,      हमारा अस्तित्व,                                             बताने के लिए,         ...

आप ही बदल गए

#दिनांक:-14/7/2024 #विधा:- ग़ज़ल  #शीर्षक:-आप ही बदल गए। हम अपने जंजालो में और फंसते चले गए, उन्हे लगा यारों, हम बदल गए । करके नजदीकी, ये दूर तलक भरम गए, कुण्ठा के मस्तक पर ,दाग नया दे गए।  खुशी की अपील नहीं मुस्कुराहट मॉगे,  आपाधापी की जिन्दगी से अनगिन आप गए।  ऐसा नहीं कि हम उन्हे याद नहीं,  सारे दिन रात संशय में चले गए । किधर का मोड किधर मुड़कर चला गया, नए का सोच पुराने से छूटते गए। इच्छा आज भी बलवती है मिलन की। बस दर्द हरा हो गुलाबी गुलाब हो गए।  जितना सफर किया बस ये समझा,  हर शख्स को समझते समझते हमी नायाब हो गए । मेरे रंग की रंगीनियत दुनिया में ऐसी फैली,  हम एक अमावस के महताब हो गए । दूसरो को अब क्या ही उलाहना देना, अपने आप झांको आप ही बदल गए। (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय  चेन्नई