मूर्खता

#दिनांक:-1/4/2024
#शीर्षक:- मूर्खता

एक अप्रैल तो बेचारा खामखा बदनाम है,
बेवकूफ तो बनाना दिनचर्या का एक काम है,
इंसान इंसान को रोज मूर्ख बनाने को बेताब,
विज्ञापन अभियान मूर्ख बनाने का ही धाम है ।

इस परम्परा की शुरूवात हुई अंग्रेजो के द्वारा,
किया सोने की चिड़िया का वारा-न्यारा,
बना यह नियम प्रबुद्ध निरन्तर गतिमान,
अपने भी इसके झांसे में कर लिए किनारा ।

अप्रैल फूल रोज बनाते बच्चे माता-पिता को,
प्रेम है तुमसे जानेमन प्रेमी उल्लू बनाते ललिता को,
बच्चों के साथ कभी मूर्खता रोचक लगती अपनी,
अथाह कष्ट होता, मूर्ख बनाई गई, लूटते वनिता को ।

(स्वरचित,मौलिक)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई 

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