पा लिया तुम्हें

#दिनांक:-4/4/2024 
#शीर्षक:- पा लिया तुम्हें

अन्तर्मुखी है प्रेम मेरा,
कभी चाहो तो आजमा लेना।
बन्द आँखें रुकती साँसें,
देखकर तुझे मिंचती-भिंचती,
को ना कभी खामखा लेना।
द्रवित उद्गार का उद्गम,
मिलता पवित्र सरिता संगम।
मलय में घुलती सुगंध,
होश बच पा रहा मंद ।
क्षीरसागर सी रजनी दिव्यमान,
चाँद उतारता नजरें माँ समान।
आलिंगन आर-पार होने का आरोप,
पागल को प्रभु प्रेम मिले हर रूप।
आह! चंचल चितवन में हो रही गुदगुदी,
कल का बीता दिन आज लग रही सदियों सदी।
कोई माप ना ले बढ़ती धड़कनों की रफ्तार,
उद्विग्न उद्वेलित उद्घाटित उन्नत प्रेम त्यौहार।
तुम बिना देखे मुझे प्यार नहीं करते हो,
मेरे भाव को देखकर ही इजहार करते हो,
पर मैं अन्तर्मुखी हूँ।
बंद आँख पढ़ती भावपक्षी हूँ।
तुमने मेरी नग्नता को देखने की चेष्टा की,
मैंने तुम्हारी आत्मा को परखने की चेष्टा की।
तुमने मिट्टी के शरीर की चमक से प्रेम किया ,
मैंने तुम्हारी रूह में चमकते चितवन से प्रेम किया।
इसलिए तुम मुझे नहीं समझ पाये कभी से,
पर तुमसे ज्यादा मैंने,पा लिया तुम्हें तुम्हीं से ।

(स्वरचित, मौलिक )
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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