जब-जब हो सामना
#दिनांक:-5/4/2024
#शीर्षक:- जब-जब हो सामना।
मदभरे नशीले अनसुलझे दो नैन,
जब-जब हो सामना बैचैन हो चैन।
मनमोहनी रसधार मोटी कजरार,
सुध-बुध की खोजबीन में आतुर हो रैन।
भाव अनंत छिपाकर,
कुछ अनछुए बताकर।
जाम मुहब्बत का पिलाकर,
मचलते दिल को सताकर।
दयाभाव ममतामयी ये दो नैन।
जब-जब हो सामना बैचैन हो चैन।
रहस्यमयी अन्तर्निहित नयन,
रिझता कभी खिझता सजन।
बातचीत की शुरुआत नयन,
मिलते ही हो जाता है मगन।
सुख में हँसे दुख में झरे दोनों नैन,
जब-जब हो सामना बैचैन हो चैन।
(स्वरचित,मौलिक)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
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