पंखुरी सी बिखरे
#दिनांक:-27/4/2024
#शीर्षक:- कलिका खिलकर पंखुरी सी बिखरे।
क्षणभंगुर यह दुनिया,
दिखती विशाल पर होती क्षणिक,
मेघों की क्षणिकायें भटकता पथिक,
जाना है किस ओर?किस ओर चल पडती
जीवन के उद्देश्य में अहम कड़ी जोड़ती,
गम पहाड लगता है अक्सर सबको,
खुशियाँ क्षण बन लुभाती मन को।
कभी अनित्यता ना गुहार करे ,
क्रोधित खुद पर प्रहार करे ।
कलिका खिलकर पंखुरी सी बिखरे ,
कलि काल कुठार लिए फिरे।
शीतल मंद पवन सिहर-सिहर सिहराती,
सुगन्धित जीवन है क्षणभंगुर बताती।
नम्रता की चोट सहनशील नहीं,
हरि सुमिरन आजीवन तल्लीन नहीं।
मरण का साया जब सिर पर आया,
भूत आकर वाचे प्रभु सुमिरन ना भाया।
गुरूर मन का प्रेम को ना पढ पाया,
इतनी अकड़न कि मिला प्यार भी ठुकराया।
किस बात का घमंड घमासान हो रहा,
क्षणभंगुरता की चोट आजीवन है खाया।
पर संतोष नहीं कुछ और भी अभी समेटना है ,
पोते को देख लिया नातिन को भी देखना है ।
सर्वशक्तिमान को बरगाता निशदिन,
सोचता दृष्टांत में जीवन का वृतांत लपेटना है ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
#शीर्षक:- कलिका खिलकर पंखुरी सी बिखरे।
क्षणभंगुर यह दुनिया,
दिखती विशाल पर होती क्षणिक,
मेघों की क्षणिकायें भटकता पथिक,
जाना है किस ओर?किस ओर चल पडती
जीवन के उद्देश्य में अहम कड़ी जोड़ती,
गम पहाड लगता है अक्सर सबको,
खुशियाँ क्षण बन लुभाती मन को।
कभी अनित्यता ना गुहार करे ,
क्रोधित खुद पर प्रहार करे ।
कलिका खिलकर पंखुरी सी बिखरे ,
कलि काल कुठार लिए फिरे।
शीतल मंद पवन सिहर-सिहर सिहराती,
सुगन्धित जीवन है क्षणभंगुर बताती।
नम्रता की चोट सहनशील नहीं,
हरि सुमिरन आजीवन तल्लीन नहीं।
मरण का साया जब सिर पर आया,
भूत आकर वाचे प्रभु सुमिरन ना भाया।
गुरूर मन का प्रेम को ना पढ पाया,
इतनी अकड़न कि मिला प्यार भी ठुकराया।
किस बात का घमंड घमासान हो रहा,
क्षणभंगुरता की चोट आजीवन है खाया।
पर संतोष नहीं कुछ और भी अभी समेटना है ,
पोते को देख लिया नातिन को भी देखना है ।
सर्वशक्तिमान को बरगाता निशदिन,
सोचता दृष्टांत में जीवन का वृतांत लपेटना है ।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई
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