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अवध-राम को नमन

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#दिनांक:-26/12/2024 #शीर्षक:-अवध-राम को नमन अब घटनाओं का विवरण आने वाला है, क्योंकि बेचारा दिसम्बर जाने वाला है। हर परिस्थिति परिणाम को संभाले रखा, संस्कार से सम्मान संस्कार होने वाला है। सारे जंग, सारे रिश्ते, सारी मुहब्बत समेट, भूतकाल की बाँहों में प्रेमी गिरने वाला है। हँसी ठिठोली झेला, कम्पित कड़ाके की ठण्ड, प्रसिद्धि की फुलझरियाँ अब बनने वाला है। गुनाह, गम, दुख सबके याद किए जाएंगे, मुस्कान भर जनवरी का सबेरा आने वाला है। आखिरी बार महक होगी,टूटी इत्र की शीशी, देखेंगे गुजरी बात याद रोकर बुलाने वाला है। कहीं हार की चुभन,कहीं जीत शानदार हुई, अवध-राम को नमन, प्रतिभा चाहने वाला है। (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

मधुमास सा

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#दिनांक:-21/12/2024 #शीर्षक:-मधुमास सा प्रेम अमृत रस पान करके, इश्क चले अब धारण करने। शीर्षक याद लिख कर गीत, व्रत एकाकी का पारण करने। अलंकार से सुसज्जित कर, स्वयं को स्वयं में लज्जित कर। इच्छाओं की गांठ बाँधकर चले, भाव करुण का कारण धरने। सुनकर धड़कनों की आवाज, तुम्हारे प्रेम का सुनाती आगाज। तुम कहीं वही तो नहीं हो प्रेमी, जो आये हो मुझे तारण करने। राधा बनाकर ह्दय-पटल में, कृष्ण तड़पे ब्रह्मांड अटल में। निशा की दहक दिवस की तरस, बोलते राधे-राधे उच्चारण करने। मन करता है श्वास को लिख दूँ, उभरते हर भाव-प्यास लिख दूँ। आह निकली नयनों से जब-तब, आते गम, तन्हाई, मारण करने। प्रार्थना करती प्राणेश्वर हरीश, जन्मों का साथी मिला मरीच। मधुमास सा सौन्दर्य खिला ये, प्रतिभा का दुख जारण करने। (स्वरचित, मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित है) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

उर-ऑंगन के चाँद तुम्हीं हो

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#दिनांक :-17/12/2024 #शीर्षक:-उर-ऑंगन के चॉंद तुम्हीं हो। नादान ह्दय बेचैन हुआ, बताओ कैसे हम बहलाएं ।।1। रोक रखा है कुछ तुमको, कैसे प्रेम उसे समझाए ।।2। ऋतु की तरह आते-जाते, बताओ कैसे मौसम ठहराए ।।3। अनमना मन अनकही बातें, बताओ कैसे तुमको बताए ।।4। हर पल आती याद तुम्हारी खुद को कैसे याद दिलाए ।।5। गिर रही दीवार देखो उम्र की, कैसे संभाल उसे हम पाए।।6। विमुख होकर चले गए हो , अब कैसे कहो तुम्हें मनाएं ।।7। डूबना तुझमें अच्छा लगता, अपनी आदत किसे बताए।।8। उर-ऑगन के चांद तुम्हीं हो, कैसे चांदनी हम बन जाएं ।।9। मन भाव समर्पित गीत लिखूॅ, नित प्रतिभा नूतन राग सुनाए।।10। (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

एक बार मनुहार करना जरुर

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#दिनांक:-1/12/2024 #शीर्षक:-एक बार मनुहार करना जरूर। नदी की तरह तुम बहना जरुर, सुभावों को नमन करना जरूर। मन का मीत जब मिल जाए,  एक बार मनुहार करना जरुर।  मनुजता की पहली पसंद प्रेम,  जीवन में सच्चा प्रेम करना जरुर।  गम का शोर बेहिसाब समुन्दर में, नदी बनकर समुद्र से मिलना जरूर । झुरमुट की ओट से झांकती चाँदनी,  चाँद संग सितारों सा चमकना जरूर। हवा मस्ती में महक प्रियतम की लाती,  खूशबू संग जागरण तुम करना जरूर। मनुष्यों में होता आस्था प्रेम प्रकट,  प्रेम-प्रतिभा संग जीवन जीना जरूर। (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई