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सब धरा का धरा रह जायेगा

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#दिनांक:-28/5/2024 #शीर्षक:-सब धरा का धरा रह जायेगा किस बात का घमंड है बन्दे, जो सीरत से ज़्यादा सूरत पे इतराता है, ये सिर्फ आकर्षण जवानी का है, जो भूले की तरह शाम को घर आता है। आज है शरीर सुंदरता पूरित, कल मिट्टी में मिल जाएगा, घमंड करके क्या पायेगा बंदे, सब धरा का धरा रह जाएगा । मोह न कर सुन्दर गोरा तन छलावा है, जीवन क्षणभंगुर सिर्फ एक माया है, सबके लिए प्रेम और खुला दिल रख, इंसान की सच्चाई ही असली काया है । न करना घमंड न दिखा सुन्दरता, सब्र का बांध पगड़ी ले नाम राम का। सहयोग कर कमाओगे पुण्य जितना, बिन गए तीर्थ सुफल होगा चारों धाम का । करो प्रेम सबके आन्तरिक सुंदरता से, जो नहीं ढलती कभी उम्र के ढलान से, शेष सच्चा प्रेम और दरियादिली के किस्से, जब कंधों पे चढ़ के जाओगे घाट पे। (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

आप ही बदल गए

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#दिनांक:-18/5/2024 #शीर्षक:-आप ही बदल गए। हम अपने जंजालो में और फंसते चले गए, उन्हे लगा यारों, हम बदल गए । करके नजदीकी, ये दूर तलक भरम गए, कुण्ठा के मस्तक पर ,दाग नया दे गए।  खुशी की अपील नहीं मुस्कुराहट मॉगे,  आपाधापी की जिन्दगी से अनगिन ख्वाब गए।  ऐसा नहीं कि हम उन्हे याद नहीं,  सारा दिन रात संशय में चले गए । किधर का मोड किधर मुड़कर चला गया, नए का सोच पुराने से छूटते गए। इच्छा आज भी बलवती है मिलन की। बस दर्द हरा हो गुलाबी गुलाब होते गए।  जितना सफर किया बस ये समझा,  हर शख्स को समझते समझते हमी नायाब होते गए । मेरे रंग की रंगीनियत दुनिया में ऐसी फैली,  हम एक अमावस के महताब हो गए । दूसरो को अब क्या ही उलाहना देना, अपने आप झांको आप ही बदल गए। (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय  चेन्नई

माँ

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#दिनांक:-15/5/2024 #शीर्षक :- माँ ऐसा वर ढूंँढना प्रेमपूर्ण सद्भाव की हो पराकाष्ठा, निर्वाह की रखे हमेशा चेष्टा। नम ना होने दे कभी नयनों को, रूठूँ अगर मनुहार की रहे निष्ठा। मेरी ही ग़ज़ल कहें, कविता लिखें, मुझमें सराबोर हो मुझे सरिता लिखें। अहसास बातों का न रहे कभी मोहताज, कुरूप हूँ पर ना कभी वर्णित भारिता लिखें। पति अद्वितीय विलक्षण सिमरन पाऊँ, हर दु:ख-दर्द का अथाह समर्पण पाऊँ। खाएँ मिल-जुलकर, खाना साथ बाँटकर, सम्मान प्रेम भावना अगाध प्रत्यर्पण पाऊँ। इतवार का भार रहे समान कंधों पर, अनाज बखार रहे भरा मेहनत धंधों पर। कमी खोज हर दम रहे उसे हर जगह मेरी, डोर अटूट विश्वास का बंधन रंगीन रंगों पर। माँ ऐसा वर ढूंँढना संग-साथ का संगम हो, बचपना जब करूँ पिता समान संयम हो। दुलार बस और बस तेरे जैसा करे मेरी माँ, गलती पर भी विनयशील उदार संयत हो। प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई

प्रेम दिवानी

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#दिनांक:-7/5/2024 #शीर्षक:-प्रेम दिवानी। कन्हैया रात सपने में आया मंत्रमुग्ध सी, मैं बावरी जैसी तकती रही, सुन्दर सलोना कान्हा की सुरतियां, कल ही तो जन्मे लल्ला, आज से ही चमत्कारी किरितियां, हे माधव , मेरे कोख से जन्मे होते, सारी माताएं , इसी सोच मे बितातीं दिन रतिया । आँख मोरनी सी, नाक सुगवा जईसन , मथवा चौड़ा भाग्य चमकीला जईसन , अधरों पर मुस्कान अति शोभित, केश, केशव क घुंघराला जईसन । मनमोहिनी सुरतियां पर से, अंखियाँ फिसलत न मोर सखी, चकाचौंध हो गईल बा सारी रतिया सखी। नजर क टीका मैया यशोदा लगावत रहें, फिर भी नजर लग जाए न मोर सखी ! सुधबुध खोई, खो गई मैं तो तुम में कन्हैया! देखूँ सबको, सब लेत हवैं तेरी बलैया , बलि बलि जात हैं सब नर-नारी, पार करो जीवन की नैया मारी, बनकर खेवईया।🙏🏻🙏🏻 नटखट कृष्ण, अभी से करें गोपियों संग छेडखानी , कभी छुवत इधर , कभी छुवत उधर, अंखियन से प्रेम करत! बोले न बानी, प्रेम की रासलीला, मुझसे भी रच लो, हे माधव , प्रतिभा जन्म जन्मांतर से है , तेरी प्रेम दिवानी। रचना मौलिक, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है। प्रतिभा पाण्डेय ...

हर इश्क में रूह होता है

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#दिनांक:-6/5/2024 #शीर्षक:-हर इश्क में रूह रोता है। सब साफ-साफ आज फिर दिख रहा, बहुत दूर हूँ अतीत से, फिर भी दिल दुख रहा । कमी नहीं थी उसमें, न कमी की ढूंढ की मैंने, सलोना सा सांवरा रंग, डाला आकर सुकुन में भंग। नहीं चाहती थी मैं मीरा बनूँ, नहीं चाहती थी सितारा बनूँ। पर समय भी अजीब करवट लेता है, चैन को कहाँ चैन देता है? इश्क  कर मन मयूर झूम रहा, दिल में हलचल मच रहा। सुध-बुध खोई नींद खोई, सपनों की बाँहों में रैन खोई। आह! सारा दिन सारी रात, बात से उपजती बात। फिर वही हुआ जो होता है, हर इश्क में रूह रोता है। किस्मत का बलशाली नहीं कारोबार, गलतफहमी की होती हमेशा शिकार। हर यंत्र का मंत्र जाप किया, जादू टोने का उपाय किया। हर प्रतिफल अपने आप मिला, असफल प्रेम का ही श्राप मिला । (स्वरचित) प्रतिभा पाण्डेय "प्रति" चेन्नई